RANJEET KUMAR YADAV

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Thursday, February 3, 2011

RUTHE SHAYAR KI ACHHI SHAYARI

मंज़िलों की खोज में तुमको जो चलता सा लगा
मुझको तो वो ज़िन्दगी भर घर बदलता सा लगा

धूप आयी तो हवा का दम निकलता सा लगा
और सूरज भी हवा को देख जलता सा लगा

झूठ जबसे चाँदनी बन भीड़ को भरमा गया
सच का सूरज झूठ के पाँवों पे चलता सा लगा

मेरे ख्वाबों पर ज़मीनी सच की बिजली जब गिरी
आसमानी बर्क क़ा भी दिल दहलता सा लगा

चन्द क़तरे ठन्डे क़ागज़ के बदन को तब दिए
खून जब अपनी रगों में कुछ उबलता सा लगा

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